विद्यासागर सेतु भारत में सबसे लंबा तारों पर टिका पुल है तथा यह एशिया का सबसे लंबे पुल में से एक है । जिसकी लंबाई 823 मीटर (2700 फीट) है। हुगली नदी पर निर्मित यह दूसरा पुल है पहला हावड़ा ब्रिज जिसे रवींद्र सेतु के नाम से भी जाना जाता है । उत्तर में अवस्थित रवींद्र सेतु 3.7 किलोमीटर (2.3 मील) है जो 1943 में पूरा हुआ था । इस द्वितीय पुल का नाम शिक्षा सुधारक, पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम पर रखा गया है, जिसके निर्माण पर 3.88 बिलियन भारतीय रुपए खर्च आया है ।
इसका निर्माण 3 जुलाई 1979 को प्रारंभ हुआ था तथा 10 अक्टूबर 1992 को हुगली रीभर ब्रिज कमीशन द्वारा चालू किया गया था । यह ब्रिज हुगली रीबर ब्रिज कमीशन के नियंत्रण में है । पुल का इस्तेमाल प्रतिदिन 30,000 वाहनों द्वारा किया जाता है, जो कि पुल की क्षमता 85000 की अपेक्षा काफी कम है ।
अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद जनसंख्या एवं वाणिज्यिक गतिविधियां तेजी से बढ़ी है । हुगली नदी के आर-पार एकमात्र संपर्क सूत्र है- हावड़ा ब्रिज, जिस पर हावड़ा एवं कोलकाता के बीच रोजाना 85000 से अधिक वाहनों की अत्यंत ट्राफिक जाम रहता था । इस वजह से नदी के ऊपर नए पुल की योजना की जरूरत महसूस हुई ताकि पुल के करीब अवस्थित राष्ट्रीय राजमार्ग के जरिए मुंबई, दिल्ली और चेन्नई के प्रमुख शहरों को जोड़ा जा सके ।
पुल का शिलान्यास श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा 20 मई,1972 को किया गया था । पुल को पूरा होने में 22 वर्षों से अधिक समय लगा तथा लागत भारतीय मुद्रा में 3.88 बिलियन रू आई, परंतु उन 7 वर्षों में कोई भी निर्माण गतिविधि शुरू नहीं हुई थी । पुल का नाम उन्नीसवीं सदी के बंगाली शिक्षा संस्कारक पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम पर रखा गया । तारों पर टिके पुल पर कार्य कोलकाता छोर पर अच्छे कर्व के निर्माण के साथ शुरू हुआ और 3 जुलाई 1979 को समाप्त हुआ एवं जब 10 अक्टूबर 1992 को चालू हुआ, तब यह दुनिया का इस प्रकार का सबसे लम्बा स्पैन पुल बन गया । उस समय भारत का यह पहला केबल स्टेड ब्रिज था, जो एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का तीसरा सबसे लंबा पुल बन गया ।
विद्यासागर सेतु तारों पर झूलता पुल है, जिसमें 121 तार पंखे की व्यवस्था के साथ है, जिसका निर्माण 127.62 मीटर (418.7 फीट) ऊंचे स्टील पाइलऑन के इस्तेमाल से किया गया है । कुल लंबाई 823 मीटर (2700) फीट के साथ विद्यासागर सेतु भारत का सबसे लंबा तारों पर झूलता पुल है तथा एशिया का भी सबसे लंबे पुलों में से एक है । डेक को कंपोजिट स्टील री-इनफोर्स्ड कंक्रीट से दो कैरिज वे के साथ निर्मित है । पुल की कुल चौड़ाई है 35 मीटर (115 फीट) प्रत्येक दिशा में 3 लेन वाली एवं दोनों तरफ 1.2 मीटर (3 फीट 11 इंच) चौड़ा फुटपाथ है । मुख्य स्पैन के ऊपर डेक है 457.20 मीटर (1500फीट) लंबा है । दोनों ओर के स्पैन को समानांतर वायर केबल द्वारा सहारा दिया गया है तथा जो 182.88 मीटर (600 फीट) लंबी है । विद्यासागर सेतु एक टोल ब्रिज है तथा मुफ्त साइकिल की लेन है। इसके पास एक दिन में 85,000 वाहनों से अधिक आवागमन की क्षमता है । पुल की डिजाइन स्लैच बर्जरमान एण्ड पार्टनर द्वारा बनाई गई थी तथा उसकी जांच फ्रीमैन फॉक्स एवं पार्टनर्स तथा भारत भारी उद्योग निगम लिमिटेड द्वारा की गई । निर्माण कार्य ब्रेथवेट बर्न जेसप एंड कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (बीबीजे) के कंसोरटियम द्वारा किया गया । हुगली नदी ब्रिज कमीशन (एचआरबीसी) पुल का प्रचालन कमीशनींग के लिए जिम्मेदार था ।
पुल की डिजाइन अन्य पुलों से थोड़ी भिन्न है, जो लिव लोड कंपोजिट कंस्ट्रक्शन के हैं । यह फर्क डेड लोड डिजाइन कंसेप्ट में है, जिसे इस पुल के लिए अपनाया गया था तथा मध्यवर्ती ट्रेसल के सहारे साइड स्पैनो की कंक्रीटींग किया गया है । डेक की डिजाइन गर्डरों के ग्रिड स्ट्रक्चर के साथ बनाई गई है । गर्डर का एक सेट आखिर में है तथा अन्य सेट बीच में है, जिसे सेंटर से सेंटर 4.2 मीटर (14 फ़ीट) के औसत स्पेस पर रखे गए गर्डरों द्वारा बांधा गया है ।
पुल के मुख्य स्पैन के निर्माण हेतु 1डेक क्रेन का प्रयोग किया गया था । 45 टन क्षमता की विशेष रूप से डिजाइनवाली क्रेन का इस्तेमाल ब्रिज के पाईलॉन को इरेक्ट करने के लिए किया गया था । पुल में प्रयुक्त स्ट्रक्चरल स्टील का वजन लगभग 13200 टन है । पाइलॉन जो कि 128 मीटर (420 फीट) ऊंचा है, की डिजाइन फ्री स्टैंडिंग पोर्टल के रूप में किया गया है । उन्हें दो क्रॉस पोर्टल मेंबरों को दिया गया है - एक तले में और दूसरा सबसे ऊपर पाइलॉन हेड के नीचे । डेक को आखरी पियर्स के साथ पियर्स के चैंबरों में बैठाए हुए बोल्ट द्वारा जोड़ा गया है । रीवेट से निर्मित 4 X 4 मीटर (13 X 13 फीट) के स्टील बॉक्स से बने पाइलॉन को पुल के दोनों तरफ के स्पैनों पर उठाया गया था ; एक सेट को कोलकाता की ओर दूसरे सेट को हावड़ा की ओर । पुल के कोलकाता की ओर के छह पइलॉन को 75 मेट तथा 50 मेट के क्रेनों का प्रयोग करके स्थापित किया गया था जबकि हावड़ा छोर की ओर 50 मेट का एक क्रेन उपयोग किया गया था । पियरों के आधार के साथ पाइलॉन के एंकरेज को डाइविडैग रॉड के जरिए पियरों के साथ ऐंकर कर के प्रभावी किया गया था । तारों को 32 मेट हॉस्ट फ्रेमों की मदद से चार पाईलॉन हेडों से इरेक्ट किया गया था । हॉस्ट फ्रेमों का प्रत्येक पाइलॉन हेड के ऊपर चढ़ाया गया था । उठाने की सुविधा के लिए शीव ब्लॉकों, विंचेज तथा स्नैच ब्लॉकों का इस्तेमाल किया गया था एवं पाइलनों के अंदर केबिल्स जैक से दबे हुए थे । तारों तथा उच्च डेंसिटी वाले पॉलीथिलिन ट्युबों (एचडीपीआई) के बीच जगह को भरने के लिए दबाव मुक्त भराई की गई थी । पाइलॉन के भीतर लगाए गए 2 टन टावर क्रेन ने केबिल्स को उनकी स्थिति तक उठाया था ।
यह पुल इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलोर में प्रोटोटाइप विंड टनेल परीक्षण के अधीन था । बेयरिंग का प्रयोग खड़े और आड़े दिशा में किया गया था, दोनों छोर के पियरों पर 4 सेगमेंटों में ग्राउटेड कॉलर के साथ तथा आड़ी बेयरिंग दो मध्य पियरों पर ताकि लेटरल मूवमेंट के विरुद्ध स्थिरता हासिल की जा सके । फ्री छोरों पर 400 मिमी (16 इंच) के आड़े विस्तार के लिए मौरे सोने एक्सपेंशन जॉइंट प्रदान किया गया था । 115 मिमी (45 इंच) फिक्स्ड छोर के स्लैब सील किश्म के एक्सपेंशन का प्रयोग जोड़ों के आड़े विस्तार के लिए किया गया था । पुल ढांचे में लगाए गए अन्य जरूरी उपकरण है – हैंडरेल्स, लाइटनिंग अरेस्टर्स, क्रैश वैरियर्स, गैस सर्विस सपोर्ट स्ट्रक्चर, टेलीफोन तथा बिजली की लाइनें, पाइलॉन में लिफ्ट तथा एक मेन्टेनेंस गैण्ट्री ।
आधिकारिक नाम : विद्यासागर सेतु
डिजाइन : तारों पर टिका सड़क पुल - डेड लोड कंपोजिट डेक स्ट्रक्चर के साथ
कुल लंबाई : 882.96 मीटर (2700 फीट)
चौड़ाई : 35 मीटर (115 फीट)
सबसे लंबा स्पैन : 457.2 मीटर (1500 फीट)
निर्माण प्रारंभ : 3 जुलाई 1979
यातायात के लिए खुला : 10 अक्टूबर 1992
दैनिक यातायात : 85,000 वाहन
खास बातें : साइड स्पैन : 182.88 मीटर प्रत्येक, पाइलोन-122 मीटर ऊंचा, 152 केबल,
केबल का वजन : 1400 मेट,
स्टील कार्य : 13200 मेट (लगभग), आपूर्ति, फेब्रिकेशन एवं इरेक्शन